Monday 15 September 2014


सारी बस्ती में ये जादू... सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको; जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको; सदियों का रस जगा मेरी रातों में आ गया; मैं एक हसीन शक्स की बातों में आ गया; जब तस्सवुर मेरा चुपके से तुझे छू आए; देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए; गुस्ताख हवाओं की शिकायत न किया कर; उड़ जाए दुपट्टा तो खनक ओढ़ लिया कर; तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं; एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं; रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोखे खाए हैं; अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए हैं।

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