Saturday 30 May 2015

बेजुबान पत्थर

बेजुबान पत्थर पे लदे है करोडो के गहने मंदिरो में ।
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हे हाथो को देखा है।।
सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूरत के आगे । बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है ।।
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार ,पर बहार एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।
वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हाल के लिए , घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।
सुना है चढ़ा था सलीब पे कोई दुनिया का दर्द मिटाने को, आज चर्च में बेटे की मार से बिलखते माँ बाप को देखा है।
जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन , आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।
जिसने न दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी , आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा ।
दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने, आज पीटते उसी शौहर के हाथो सरे राह देखा है ।
मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारो ,
जिसे खुदको काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरो का माहिर लिखते देखा है ।
जिस घर की एकता की देता था ज माना कभी मिसाल दोस्तों ,
आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।
जिसने ली ना कभी सलाह बुजुर्गों की,
आज उसे वकील की सलाह लेते देखा है

Thursday 21 May 2015

आंटी बोली:- बेटा तो अब क्या करोगे ?



written by:- Arahan Singh Dhami

  हर दिन की तरह उस दिन भी मैं बेकार बैठकर कुछ सोचते हुए सुर्ती बना रहा था, सुर्ती  मुँह में डालने के बाद कुछ स्फूर्ति आयी. इतने में पड़ोस की एक आंटी मिठाई का डिब्बा लेकर हमारे घर आयी, मैंने आंटी को नमस्ते किया, और आंटी ने बोला ले बेटा  मिठाई खा , मैंने पूछा किस बात के लिए मिठाई खिला रही हो. आंटी बोली मेरी बहन  के देवर की बहन के बेटे की सरकारी नौकरी लग गयी, मैंने कहा  बधाई हो, इतने में मम्मी भी आ गई, आंटी ने मम्मी को भी  मिठाई खिलाई मम्मी ने पूछा किस ख़ुशी में मिठाई खिला रहे हो, आंटी ने बता दिया मेरी  बहन के देवर की बहन के लड़के की नौकरी लग गयी. मम्मी ने भी उन्हें बधाई दी.मम्मी के चेहरे पर थोड़ी मायूसी सी  झलक रही थी माँ सोच रही थी काश मैं भी अपने बेटे की नौकरी लगने की ख़ुशी में मिठाई बाँट सकती। मैं समझ गया मम्मी ऐसा सोच रही है. मम्मी आंटी को बैठने के लिए बोलकर उनके लिए चाय बनाने चली गयी. आंटी ने मुझ से पूछा और बेटा  आजकल क्या कर रहे हो, आंटी ने जानबूझकर ये सवाल पूछा। मैंने बोला आंटी वो ही पुराना काम कर रहा हूँ , आंटी बोली  कौन सा काम? मैंने बोला कुछ नही करने का काम.आंटी बोली बेटा तुम्हारी उम्र भी निकल रही है कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ेगा, ऐसे कैसे चलेगा, तुम्हारी पिताजी भी इस दुनिया में नही हैं, उनकी पेंशन के भरोसे कब तक रहोगे, बिना नौकरी के कोई लड़की तुमसे शादी भी नही करेगी,  आंटी बोले जा रही थी और मैं मन ही मन आग बबूला हो रहा था. फिर सोचा आंटी बड़ी हैं ठीक ही बोल रही हैं. आंटी ने पूछा जो तुमने फॉर्म भरा था उसका क्या हुआ मैंने बोला clear नही कर पाया। अगली बार try करूँगा। आंटी बोली बेटा  न जाने तुम कब से फॉर्म भरे जा रहे हो, लेकिन किसी में भी नही निकले, ऐसे फॉर्म भरते भरते तो तुम्हारी जिंदगी बीत जायेगी। मैंने dialogue मार दिया आंटी कोशिश करने वालों की हार नही होती। आंटी बोली वो तो  ठीक है, तुमने कॉलेज कर लिया, ये बताओ अब आगे क्या करोगे ?
मैं सोच में पड़  गया और अपने माथे पर हाथ रख कर बोला आंटी आगे.…हवन करेंगें   हवन करेंगें    हवन करेंगें। ये सुन कर आंटी चली  गई , अब कभी भी आंटी पूछती है बेटा  क्या करोगे मैं यही बोलता हूँ हवन करूँगा  हवन करूँगा।

Wednesday 20 May 2015

फेसबुक पर पाये जाने वाले प्राणी


...
1. द टैगकर्ता- ये फेसबुक पर पायी जाने वाली सबसे खतरनाक किस्म की प्रजाति है. ये फेसबुक पर पोस्ट-वोस्ट नहीं लिखते. बस हर दिन सौ-पचास फोटो अपलोड करते हैं- फूल, नदी, जानवर, सेलेब्रिटी, देवी-देवता, उपदेश इत्यादि की. गूगल इमेज सर्च को ये दुनिया के लिए वरदान मानते हैं. ये बड़े भोले किस्म के जीव होते हैं. ये हर फोटो में सौ-पचास लोगों को टैग करते हैं. इनको लगता है कि जो महान और ख़ूबसूरत फोटो इन्होने अपलोड की है उसे सबको दिखाना इनका कर्तव्य है. अब लोग लापरवाह हैं, कहीं भूल जाएँ देखना; तो इसलिए ये उनको टैग कर देते हैं. कभी-कभी तो ये अपनी पासपोर्ट साइज़ फोटो में सौ-दो सौ लोगों को टैग कर देते हैं.
उपाय: अगर टैगकर्ता आपसे उम्र, पद, प्रतिष्ठा में छोटा है तो एक बार हड़का दें, दुबारा टैग करने पर ब्लॉक या अन्फ्रेंड करें. अगर टैगकर्ता आपके वर्तमान, भूत या भविष्य को प्रभावित करने की क्षमता रखता है तो जाकर लाइक करें और लिखें. ‘दैड्स अमेजिंग. थैंक यू फॉर टैगिंग’ . बन पड़े तो फोटो को शेयर भी करें. अगर आप सीधे-साधे जीव हैं और टेंशन नहीं लेना चाहते तो चुपके से जाकर टैग हटाते रहें.
2. द रीडर- ये बड़े निरीह प्राणी होते हैं. किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते. ये फेसबुक पर न कुछ लिखते हैं, न कमेंट करते हैं न कुछ लाइक करते हैं. कभी-कभी लोगों को पता भी नहीं चलता कि वो फेसबुक पर हैं भी. लेकिन यह फेसबुक पर सबकुछ पढ़ते हैं. आपकी हर पोस्ट, हर कमेंट. और कभी कभार बातचीत में ये बोलेंगे,”हाँ ये तो आपके फेसबुक पर देखा था”.
उपाय: कोई उपाय जरूरी नहीं. बस एक डायरी मेंटेन करें कि ये भी फेसबुक पर हैं, जिससे कि आप कभी गलती से इनके बारे में कुछ उल्टा-पुल्टा न लिख बैठें.
3. द ताकू-झाँकू- ये ख़ुफ़िया जीव हैं जो आपकी हर गतिविधि पर नज़र रखते हैं. हो सकता है कि अपनी प्रोफाइल पर उतना टाइप आप भी नहीं स्पेंड करते हों जितना ये करते हैं. ये आपकी हर पोस्ट, कमेंट और फोटो एल्बम में गहरी दिलचस्पी लेते हैं. हो सकता है कि उसको अपने अपने कम्प्यूटर में सेव करके भी रखते हों. ऐसा ये क्यों करते हैं यह डिपेंड करता है. लेकिन यह तो तय है कि उनकी आपमें गहरी दिलचस्पी है.
उपाय: कोई सेंसिटिव तस्वीर या इन्फोर्मेशन न डालें. अपने भूतपूर्व प्रेमियों/प्रेमिकाओं/आशिकों पर खास नज़र रखें.
4. द गेमर- ये फेसबुक पर उपलब्ध तमाम तरह के गेम खेलते हैं- फार्मविले, माफियाविले, गटरविले और पता नहीं क्या क्या. और दिन भर में इसके दस-बीस अपडेट आते हैं – ‘आई गॉट लेवल फाइव ऑन फ़ार्मविले’, ‘माई टोमैटोज आर रेडी, डू यू वांट सम’, बी माई नेवर ऑन माफिया विले’ वगैरह-वगैरह.
उपाय: इनके झांसे में आकार गलती से कोई गेम ज्वाइन न करें. बहुत पछताएंगे. इनके स्टेटस अपडेट्स को ब्लॉक करें.
5. द अटेंशन सीकर- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ये अटेंशन के भूखे होते हैं और इसके लिए कुछ भी कर सकते हैं. ये ज्यादातर एन्क्रिप्टेड कोड टाइप के मैसेज लिखते हैं जिसे इनके अलावा कोई नहीं समझ पाए. जैसे- “आई न्यू इट विल हैप्पेन.”, आई कांट बिलीव यू कैन डू दिस टू मी’, ‘यस, आई डिड इट’ वगैरह वगैरह. ये उम्मीद करते हैं कि इनका कोडेड सन्देश लोग समझेंगे नहीं और पूछेंगे कि क्या हुआ.
उपाय: भूल कर भी न पूछें कि क्या हुआ. ज्यादा खुश हैं तो बस लाइक कर दें.
6. द गुरु- इनका काम होता है इंटरनेट से बड़े-बड़े फिलोस्फर्स और विद्वानों के Quotes कॉपी करने फेसबुक पर डालना. इनको लगता है कि और लोगों को नहीं पता कि ऐसे महान उपदेश इंटरनेट पर उपलब्ध हैं. और इन्हें आम जनमानस तक पहुंचाना उनका कर्तव्य है.
उपाय: अगर आप दिन भर महान उपदेशों को पढकर इनफीरियरिटी कॉम्प्लेक्स नहीं प्राप्त करना चाहते तो इनके स्टेटस अपडेट को अनसब्सक्राइब करें.
7. द दुष्ट- आपके कमीने दोस्त इस श्रेणी में आते हैं. इनका एक ही काम होता है. जब भी आप कुछ ढंग का लिखकर भोकाली बनाने की कोशिश कर रहे हों ये वहाँ आकार रायता फैला देंगे. जैसे आपने ‘ग्लोबल वार्मिंग, न्यूक्लियर वेस्ट और इकॉनोमिक क्राइसिस के बीच रिलेशन बैठाते हुए कोई धाँसू सी पोस्ट मारी. तो वहाँ आकार ये कमेंट करेंगे,”और तेरे लूज मोशन ठीक हुए या अभी भी…?” या “ये बालकनी में लाल रंग का फटा अंडरवियर तेरा पड़ा है क्या? जाके उठा ले.. बारिश आ रही है”.
उपाय: अगर आप सरे बाज़ार अपना पोपट नहीं बनवाना चाहते तो इनको खिलाते-पिलाते रहें.
8. द दुखी आत्मा- ये रोंदू टाइप जीव होते हैं. इनको लगता है कि दुनिया में और उनकी अपनी ज़िंदगी में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा. इनको लगता है कि दुनिया में हर कोई उनको परेशान करने के लिए षड्यंत्र कर रहा है. ये हर स्टेटस में रोते रहते हैं. ऐसे लोगों में धोखा खाए और गर्लफ्रेंड-ब्वायफ्रेंड के ठुकराए प्रेमी ज्यादा होते हैं.
उपाय: इनसे सौ फीट की दूरी बनाकर रखें. क्योंकि यह कम्यूनिकेबल बीमारी है.
9. द हाइजैकर- ये अजीब किस्म की प्रजाति है. ये आपके पूरे पोस्ट को ही हाइजैक कर लेंगे. ये पोस्ट के टॉपिक से हटकर कुछ अलग ही बात शुरू कर देंगे. जैसे आपने भ्रष्टाचार और पॉलिटिक्स पर कुछ लिखा तो वो आकार कमेंट करेंगे,’हाय, हाउ आर यू? सब ठीक चल रहा है?’ और फिर वो चैटिंग में बदल जाएगा. कभी-कभी उनके और दोस्त भी चैटिंग को ज्वाइन कर लेंगे और आपको लगेगा कि ये आपकी नहीं उनकी ही पोस्ट है. आपके जो मित्र आपकी पोस्ट पर कमेंट करना चाहेंगे वे वहाँ रायता फैला देखकर निकल लेंगे.
उपाय: टॉपिक से अलग कमेंट का जवाब पोस्ट पर न देकर मैसेज में या उनकी वाल पर जाकर दें जिससे रायता वहीं फैले. आपकी पोस्ट पर नहीं.
..शेस फिर किसी दिन

Tuesday 19 May 2015

स्कूल के नियम तोड़कर करोड़पति बने


जैक कार्टर, एचएमए
स्कूल के नियम तोड़ने की वजह से शायद ही कोई आदमी करोड़पति बना हो लेकिन जैक कार्टर को उनकी अनुशासनहीनता ने ही करोड़पति बना दिया
साल 2005 में, 16 साल का यह स्कूली छात्र पूर्वी इंग्लैंड में नोर्फ़ॉक के अपने स्कूल में कंप्यूटर नेटवर्क पर लगाई गई बंदिशों के कारण बहुत चिढ़ा हुआ था. इंटरनेट सर्फ़िंग पर ये बंदिशें इसलिए लगाई गई थीं कि ताकि विद्यार्थी संगीत और खेल की वेबसाइट्स का इस्तेमाल न कर पाएं.
कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में गहरी रुचि के चलते उन्होंने सिस्टम को हैक करने का फ़ैसला किया.
अब 26 साल के हो चुके जैक कहते हैं, "मुझे लगा कि स्कूल की लगाई गई प्रोग्रामिंग की बंदिशों को पार करना मज़ेदार रहेगा." हाल में जैक ने अपना बिज़नेस चार करोड़ पाउंड में बेचा है लेकिन वे कंपनी के मुख्य कार्यकारी बने हुए हैं.

एचएमए

जैक ने इसके लिए एक ऐसी वेबसाइट का इस्तेमाल किया जो कंप्यूटर के डिजिटल फिंगरप्रिंट को, एक रिमोट सर्वर से गुज़ारकर- जो अक्सर विदेश में होता है, उसके फिंगरप्रिंट को छुपा देती है ताकि इंटरनेट को पहचान छुपाकर और निजता के साथ इस्तेमाल किया जा सके.
एचएमए सॉफ्टवेयर
ऐसी वेबसाइट यूज़र्स को वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) उपलब्ध करवाती है.
उन्होंने इसे इस्तेमाल लायक बना लिया और जल्द ही स्कूल के कंप्यूटर का इस्तेमाल सिर्फ़ अपने होमवर्क के लिए करने के बजाय वह उस पर अपने पसंदीदा संगीत वीडियो देख सकते थे.
लेकिन जैक उस समय के वीपीएन प्रोवाइडर्स से नाख़ुश थे क्योंकि उनका इस्तेमाल मुश्किल था और विज्ञापन बहुत ज़्यादा होते थे. इसलिए उन्होंने ख़ुद एक वीपीएन बनाने का फ़ैसला किया.
इसमें उन्हें सिर्फ़ एक दोपहर का वक्त लगा और अपने मां-पिता के सोफ़े पर बैठकर उन्होंने इसे अंजाम दे दिया. इसका नाम उन्होंने शरारती सा रखा- हाइड माए ऐस (एचएमए).
एचएमए, जो बिना किसी बाहरी निवेशक के दुनिया की सबसे बड़ी वीपीएन कंपनियों में से एक बन गई, को ग्लोबल सॉफ़्टवेयर ग्रुप एवीजी ने ख़रीद लिया है.
अपने पैसे के बदले में एवीजी को एक ऐसी कंपनी मिली जिसके बीस लाख से ज़्यादा ग्राहक हैं और 1.1 करोड़ पाउंड (लगभग 1.09 अरब रुपये) का सालाना टर्नओवर है और 20 लाख पाउंड से ज़्यादा का सालाना फ़ायदा है.
जैक अब भी इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं.

महीने भर में हिट

एचएमए
एक दशक पहले सिर्फ़ 16 साल का स्कूली लड़का होने के बावजूद जैक कार्टर वेबसाइट्स को प्रमोट करने और इंटरनेट से पैसा कमाने की गुप्त कला के बारे में काफ़ी जानते थे.
उन्हें अहसास था कि एचएमए व्यावसायिक रूप से सफल हो सकती है.
इसलिए उन्होंने इसमें रुचि रखने वाले इंटरनेट फ़ोरम पर इसका प्रचार करना शुरू किया ताकि कुछ हलचल हो.
एचएमए 'एफ़िलिएट मार्केटिंग' के ज़रिए पैसा कमाती है. सीधे शब्दों में हाइड माइ ऐस को उस रिटेल वेबसाइट से कमीशन मिलता है जिसके विज्ञापन पर कोई एचएमए के ज़रिए क्लिक करता है.
एक महीने के अंदर ही एचएमए के दुनिया भर में लाखों यूज़र्स बन गए थे और उसकी सालाना आय 15,000 पाउंड (लगभग 15 लाख रुपये) हो गई थी.
जैक कहते हैं, "मैं बेहद आश्चर्यचकित था कि यह इतनी जल्दी वायरल हो गई. मैंने कभी भी कोई बिज़नेस प्लान या कुछ और नहीं बनाया था."
"मैंने पूरी वेबसाइट एक दोपहर को लॉंच कर दी. (लेकिन) अगर लोगों को लगता है कि यह अच्छा काम है तो वह इसे शेयर करते हैं."
चाहे इससे जैक को उनकी पॉकेट मनी से बहुत ज़्यादा पैसा मिल रहा था, पर उन्होंने स्कूल जाना जारी रखा और फिर नॉरिक के कॉलेज में कंप्यूटर की पढ़ाई करने गए.

फ्रीलॉंसर

जैक कार्टर, एचएमए
लेकिन 2009 में पूरा वक्त एचएमए को चलाने के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी.
उन्होंने पेड सबस्क्रिप्शन सेवा देना शुरू की जिसके अब 2,00,000 सबस्क्राईबर हैं. यह उन 20 लाख लोगों के अलावा हैं जो मुफ़्त वाला संस्करण इस्तेमाल करते हैं.
जैक को महसूस हुआ कि काम बढ़ाने के लिए उन्हें कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ेगी और उन्होंने लोगों को फ्रीलांसर के रूप में नियुक्त किया.
इसके लिए उन्होंने ऐसे लोगों को लिया जिनसे उन्होंने न तो फ़ोन पर कभी बात की, न ही व्यक्तिगत रूप से कभी मिले.
इनमें से कीयफ़, यूक्रेन, में एक वेबसाइट बनाने वाले और बेलग्रेड, सर्बिया, में एक कस्टमर सर्विस मैनेजर थे. जैक ग्रामीण नोर्फ़ॉक में अपने घर में बैठे हुए थे.
वे उन लोगों से बस ईमेल के ज़रिए संपर्क में थे.
वह कहते हैं, "मैं सही मायनों में आउटसोर्सिंग के रास्ते को अपनाने की सलाह दूंगा. इसलिए क्योंकि यह ज़्यादा महंगा नहीं पड़ता और आपको एक अच्छा सा ऑफ़िस रखने की ज़रूरत नहीं होती और आपको बहुत अच्छे कौशल वाले व्यक्ति मिल सकते हैं."

ऑफ़िस

जैक कार्टर, एचएमए
लेकिन जैसे-जैसे कंपनी विकसित हुई उन्हें अपनी इस सोच की सीमाएं भी पता चलने लगीं.
वह कहते हैं, "एक बात का मुझे थोड़ा पछतावा है कि मैंने शुरू में ही एक बड़ा ऑफ़िस क्यों नहीं खोला और इसे ढंग से कंपनी क्यों नहीं बनाया."
"जब आप बहुत तेजी से विकास करते हो तो दूर-दराज़ के इलाके में लोगों से काम लेना सही नहीं रहता. इसमें आपसी विश्वास का मसला होता है."
"एक वक्त ऐसा था जब सात या आठ देशों में लोग मेरे लिए काम कर रहे थे और बहुत हद तक आपको सचमुच पता नहीं होता कि यह लोग कौन हैं."
जैक बताते हैं कि आखिरी झटका तब लगा जब एक कॉन्ट्रेक्टर ने एक प्रतिद्वंद्वी कंपनी खड़ी करने की कोशिश की.
और फिर 2012 में जैक ने सारे काम को ऑफ़िस के अंदर से ही करना शुरू किया और लंबे समय से उनके साथ काम कर रहे फ्रीलॉंसरों को फ़ुल-टाइम स्टाफ़ के रूप में शामिल कर लिया.
जैक उसी साल लंदन भी शिफ़्ट हो गए और वहां सोहो में एचएमए का मुख्यालय स्थापित किया. इस बीच बेलग्रेड और कीयफ़ में भी शाखाएं स्थापित कीं क्योंकि उनके विश्वासपात्र कर्मचारी उन शहरों में थे.
आज उनकी कंपनी में कुल 100 कर्मचारी हैं हर साल उनकी आय दोगुनी हो रही है.

नाम का कमाल

 एचएमए
एचएमए जैसी वेबसाइट चीन जैसे कई देशों में प्रतिबंधित हैं.
एचएमए जैसे वीपीएन प्रोवाइडर्स अपने उपभोक्ताओं को बहुत सारे फ़ायदे देते हैं.
ऐसी वेबसाइट्स कुछ देशों में प्रतिबंधित हो सकती हैं. उन तक पहुंचने में लोगों की मदद करने के सिवा ये हैकर्स को यूज़र्स की निजी जानकारी या स्थान के बारे में पता लगाने से भी रोकती हैं.
हालांकि वीपीएन कंपनियों की आलोचना भी होती है. ये चीन और ईरान जैसे देशों में प्रतिबंधित हैं.
हालांकि लोग इंटरनेट पर अपनी सुरक्षा के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं लेकिन इनका इस्तेमाल बुरी नीयत वाले लोग भी अपने निशान छुपाने के लिए कर सकते हैं.
जैक कहते हैं कि अन्य इंटरनेट कंपनियों के मुकाबले एचएमए का संभावित दुरुपयोग कम हो सकता है और यह पुलिस द्वारा मांगी गई हर जानकारी उपलब्ध करवा देती है.
जैक कहते हैं कि एचएमए सिर्फ़ अपनी सेवाओं की वजह से सफल नहीं है.
"हमारे नाम ने भी इसमें भारी मदद की है."

वह कहते हैं, "इससे लोगों को हंसी आ जाती है- अगर आपने एक बार इसे सुन लिया तो फिर शायद ही कभी भूल पाएं."

Thursday 14 May 2015

Dr. Abdul Kalam's Letter to Every Indian


Dr. A P J Abdul Kalam does it again… what he always does best ! Read out his below speech of last month..hats off to this man..we want men like him to be our CM, PM & President!!..but more importantly, citizens like him.
Dr. Abdul Kalam's Letter to Every Indian - Dated - 12/03/2014
Why is the media here so negative?
Why are we in India so embarrassed to recognize our own strengths, our achievements?
We are such a Great NATION.
We have so many amazing success stories but we refuse to acknowledge them. Why?
We are the first in milk production.
We are number one in Remote sensing satellites.
We are the second largest producer of wheat.
We are the second largest producer of rice.
Look at Dr. Sudarshan , he has transferred the tribal village into a self-sustaining, self-driving unit..
There are millions of such achievements but our media is only obsessed in the bad news and failures and disasters.
I was in Tel Aviv once and I was reading the Israeli newspaper. It was the day after a lot of attacks and bombardments and deaths had taken place. The Hamas had struck. But the front page of the newspaper had the picture of a Jewish gentleman who in five years had transformed his desert into an orchid and a granary. It was this inspiring picture that everyone woke up to. The gory details of killings, bombardments, deaths, were inside in the newspaper, buried among other news.
In India we only read about death, sickness, terrorism, crime.
Why are we so NEGATIVE?
Another question: Why are we, as a nation so obsessed with foreign things?
We want foreign T.Vs,
We want foreign shirts.
We want foreign technology. Why this obsession with everything imported?
Do we not realize that self-respect comes with self-reliance?
I was in Hyderabad giving this lecture, when a 14 year old girl asked me for my autograph. I asked her what her goal in life is..
She replied: I want to live in a developed India.
For her, you and I will have to build this developed India.
You must proclaim.
India is not an under-developed nation;
it is a highly developed nation...
YOU say that our government is inefficient.
YOU say that our laws are too old.
YOU say that the municipality does not pick up the garbage.
YOU say that the phones don't work, the railways are a joke. The airline is the worst in the world, mails never reach their destination.
YOU say that our country has been fed to the dogs and is the absolute pits.
YOU say, say and say..
What do YOU do about it?
Take a person on his way to Singapore.
Give him a name - 'YOURS'. Give him a face - 'YOURS'. YOU walk out of the airport and you are at your International best.
In Singapore you don't throw cigarette butts on the roads or eat in the stores.
YOU are as proud of their Underground links as they are.. You pay $5 (approx. Rs.. 60) to drive through Orchard Road (equivalent of Mahim Causeway or Pedder Road) between 5 PM and 8 PM.
YOU come back to the parking lot to punch your parking ticket if you have over stayed in a restaurant or a shopping mall irrespective of your status identity…
In Singapore you don't say anything, DO YOU?
YOU wouldn't dare to eat in public during Ramadan, in Dubai ..
YOU would not dare to go out without your head covered in Jeddah.
YOU would not dare to buy an employee of the telephone exchange in London at 10 pounds (Rs..650) a month to, 'see to it that my STD and ISD calls are billed to someone else.
YOU would not dare to speed beyond 55 mph (88 km/h) in Washington and then tell the traffic cop, 'Jaanta hai main kaun hoon (Do you know who I am?). I am so and so's son. Take your two bucks and get lost.'
YOU wouldn't chuck an empty coconut shell anywhere other than the garbage pail on the beaches in Australia and New Zealand ..
Why don't YOU spit Paan on the streets of Tokyo?
Why don't YOU use examination jockeys or buy fake certificates in Boston ???
We are still talking of the same YOU.
YOU who can respect and conform to a foreign system in other countries but cannot in your own.
YOU who will throw papers and cigarettes on the road the moment you touch Indian ground.
If you can be an involved and appreciative citizen in an alien country,
Why cannot you be the same here in India ?
In America every dog owner has to clean up after his pet has done the job. Same in Japan ..
Will the Indian citizen do that here?
We go to the polls to choose a government and after that forfeit all responsibility.
We sit back wanting to be pampered and expect the government to do everything for us whilst our contribution is totally negative.
We expect the government to clean up but we are not going to stop chucking garbage all over the place nor are we going to stop to pick a up a stray piece of paper and throw it in the bin.
We expect the railways to provide clean bathrooms but we are not going to learn the proper use of bathrooms.
We want Indian Airlines and Air India to provide the best of food and toiletries but we are not going to stop pilfering at the least opportunity.This applies even to the staff who is known not to pass on the service to the public.
When it comes to burning social issues like those related to women, dowry, girl child! and others what do we do?
We make loud drawing room protestations and continue to do the reverse at home.
OUR EXCUSE?
'It's the whole system which has to change, how will it matter if I alone forego my sons' rights to a dowry.'
So who's going to change the system?
What does a system consist of?
Very conveniently for us it consists of our neighbours, other households, other cities, other communities and the government.
But definitely not ME & YOU.
When it comes to us actually making a positive contribution to the system we lock ourselves along with our families into a safe cocoon and look into the distance at countries far away and wait for a Mr.CLEAN to come along & work miracles for us with a majestic sweep of his hand or we leave the country and run away like lazy cowards hounded by our fears we run to America to bask in their glory and praise their system. When New York becomes insecure we run to England. When England experiences unemployment, we take the next flight out to the Gulf. When the Gulf is war struck, we demand to be rescued and brought home by the Indian government.
Everybody is out to abuse and rape the country.
Nobody thinks of feeding the system.
Our conscience is mortgaged to money.
Dear Indians, The article is highly thought inductive, calls for a great deal of introspection and pricks one's conscience too…..
I am echoing J. F. Kennedy's words to his fellow Americans to relate to Indians…..'
ASK WHAT WE CAN DO FOR INDIA AND DO WHAT HAS TO BE DONE TO MAKE INDIA WHAT AMERICA AND OTHER WESTERN COUNTRIES ARE TODAY'
Lets do what India needs from us.
Forward this letter to each Indian for a change instead of sending JUST JOKES.
Thank you …
Dr. A.P.J. Abdul Kalam

Sunday 10 May 2015

सरदार के “बारह बज गए” मुहावरे के पीछे का सच

एक सरदार पर जोक बनाना औए सुनाना कितना आसान होता है न । सर में पंगडी और बगल में कृपाण रखने वाले सरदार भी अक्सर आपके जोक्स और मजाक को भी नजरअंदाज करते हुए खुश रहते हैं.फिर भी आप उनसे बगैर पूँछे “सरदार जी के बारह बज गए” कहते हुए मजे लेते रहते हैं । ज्यादातर लोगों को लगता है की सरदार के चिल्ड नेचर और भाव-भंगिमाओं के कारण ही इस फ्रेज का लोग इस्तेमाल करते हैं । आज हम आपको बताते हैं की इस जुमले की पीछे की हकीकत क्या है,और निश्चित ही इसे पढ़कर इसका प्रयोग करने वालों को शर्मिंदगी जरूर महसूस होगी । आप ये समझ पायेंगे कि एक सरदार क्या होता है?
1) सत्रहवीं शताब्दी में जब देश में मुगलों का अत्याचार चरम पर था,बहुसंख्यक हिन्दुओं को धर्म-परिवर्तन के लिए अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं,औरंगजेब के काल में ये स्थिति और बदतर हो गयी ।
2) मुग़ल सैनिक,धर्मान्तरण के लिए हिन्दू महिलाओं की आबरू को निशाना बनाते थे । अंततः दुर्दांत क़त्ल-ए-आम और बलात्कार से परेशान हो कश्मीरी पंडितों ने आनंदपुर में सिखों के नवमे गुरु तेग बहादुर से मदद की गुहार लगाई.
mughal
3) गुरु तेग बहादुर ने बादशाह ‘औरंगजेब’ के दरबार में अपने आपको प्रस्तुत किया और चुनौती दी कि यदि मुग़ल सैनिक उन्हें स्वयं इस्लाम कबूल करवाने में कामयाब रहे तो अन्य हिन्दू सहर्ष ही इस्लाम अपना लेंगे ।
mughal
4) औरंगजेब बेहद क्रूर था,परन्तु अपनी कौल का पक्का व्यक्ति था,गुरु जी उसके स्वभाव से परिचित थे । गुरूजी के प्रस्ताव पर उसने सहर्ष स्वीकृति दे दी । गुरु तेग बहादुर और उनके कई शिष्य मरते दम तक अत्याचार सहते हुए शहीद हो गए,पर इस्लाम स्वीकार नहीं किया । इस तरह अपने प्राणों की बलि देकर उन्होंने बांकी हिन्दुओं के हिंदुत्व को बचा लिया ।
mughal
5) इसी कारण उन्हें “हिन्द की चादर” से भी जाना जाता है,उनके देहावसान के बाद,उनके सुयोग्य बेटे गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए आर्मी का निर्माण किया,जो कालांतर में ‘सिख’ के नाम से जाने गए ।
6) 1739 में जब इरानी आक्रांता नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला करते हुए,हिन्दुस्तान की बहुमूल्य संपदा को लूटना शुरू कर दिया । इन हवसी आक्रमणकारियों ने करीब 2200 भारतीय महिलाओं को बंधक बना लिया.
7) सरदार जस्सा सिंह जो की सिख आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे,ने इन लुटेरों पर हमला करने की योजना बनायी । परन्तु उनकी सेना दुश्मन की तुलना में बहुत छोटी थी इसलिए उन्होंने आधी रात को बारह बजे हमला करने का निर्णय लिया ।
8) महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने,कई हजार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया । सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया.
9) यह क्रम नादिर शाह के बाद उसके सेनापति अहमद शाह अब्दाली के काल में भी जारी रहा । अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में,हिन्दू औरतों को बेंचना शुरू कर दिया.सिखों ने अपनी मिडनाईट(12 बजे) में ही हमला करने की स्ट्रैटिजी जारी रखी और एक बार फिर दुश्मनों की आँखों में धुल झोंकते हुए महिलाओं को बचा लिया ।
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10) सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए,सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाजत की । रात 12 बजे के समय में हमला करते समय लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए”सरदार और सिख राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। सरदार के केश और कृपाण उसे अतुलित धैर्य और साहस से परिपूरित करते हैं ।
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सरदार और सिख राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं, सरदार के केश और कृपाण उसे अतुलित धैर्य और साहस से परिपूरित करते हैं । सिख एक महान कौम है,जिसने मध्यकाल में गुलामी की काली रात में सनातन और हिन्दुस्तान को स्वयं के प्राणों की बलि देकर बचाए रखा । गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रसिद्द उक्ति है

सवा लाख से एक लडाऊं,तब मै गुरु गोविंद सिंह कहलाऊं
ऐसी वीरता,साहस और ईमानदारी के पर्याय सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना/हँसना बेहद शर्मनाक है । उन विदेशी लुटेरों से रक्षित स्त्रियों के वंशजों द्वारा ‘लुटेरों की ही टिप्पणी’ को दोहराना अनजाने में ही सही पर,किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
सरदारों के “12 बज गए” एक ऐसा मुहावरा है जो की उन लुटेरों के ‘गीदड़पाने’ और हमारी वीरता का पर्याय है,इसे लाफिंग मैटर के रूप में नहीं बल्कि गर्व के रूप में कहिये।

Wednesday 6 May 2015

कुछ सत्य पर कडवे सच

कुछ सत्य पर कडवे सच 


1. भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जो अपने देश में बैठे गद्दारो पर कोई कार्यवाही नहीं करता.... 
2. भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है. जहाँ अअल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यकँ समुदाय पर अत्याचार करता है.... 
3. भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है. जिसमें सरहद पर तैनात सिपाही को एकसाल तक छुट्टी नहीं मिलती. लेकिन जेल में बंद संजय दत्त को हर 2 महीने से पैरोल पर छुट्टी मिल जाती है..... 
4. भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहाँ लाखों अरबो का घोटाला करने वाले आजाद घूमते है. लेकिन जिसपे आरोप साबित नहीं हुआ है कैंसर पीडित ऐसी साध्वी को जेल मे रखते है
 5. भारत ऐसा देश है, जहाँ आतंकवादियों और बलात्कारियों के मानवाधिकारो के लिए लड़ने वाले मिल जाते है. लेकिन आतंकवादियों के हमलों में मरने वालों के लिए कोई मानवाधिकार की बात नहीं करता.....
 6. भारत ऐसा देश है जहां हिरन का शिकार करने पर कडी सजा का प्रावधान है लेकिन गौमाता जिसे हिन्दू मां मानते है की हत्या पर सब्सिडी दी जाती है 
7. भारत के सेकुलर नेता ऐसे है, जो आतंकवादियों को सम्मान देते है और राष्ट्रवादीयों को गालियां देते है.... . 
8. भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहाँ बाहरी घुसपैठियों का घर बैठे राशन कार्ड और वोटर कार्ड बन जाते है. लेकिन इन सब के लिए चक्कर काटते काटते अपने देश के आम नागरिक की चप्पल घिस जाती है...... 
9. भारत दुनिया ऐसा देश है जहां पांचवी पास आदमी एक स्कूल का चपरासी तो नही बन सकता लेकिन नेता बन सकता है 
10. इण्डिया दुनिया का ऐसा देश है जहां के इतिहास मे भगतसिंह को आतंकवादी और भारत पर हमला करने वाले अकबर और सिकन्दर को महान बताया गया है..... ....