Friday 19 September 2014

फिर जगाया तूने सोये शेर को


मुझमे कितने राज हैं बतलायूँ क्या, बंद एक मुद्दत से हूँ खुल जाउ क्या...??? . मिन्नत...खुसामाद...इल्तज़ा और मैं क्या-क्या करूं, मर जाउ क्या...??? . एक पत्थर है वो मेरी राह का गर ना ठुकराउ तो ठोकर खाउ क्या...??? . तेरे ही इश्क़ का परचम लिये लाशों की तरह फिरते थे हम, तेरे दिये वो सारे दर्द गिनवाउ क्या...??? . फिर जगाया तूने सोये शेर को, अपना फिर वही लहजा-दराजी दिखाउ क्या...???

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