हमारे यहां हिंदी फिल्मों में हत्या और हाॅलीवुड की फिल्मों की हत्या में बड़ा फर्क है।
हमारे यहां हीरो हीरोइन की मौजूदगी में उसे अपनी युद्धकला के सारे जौहर दिखाने के बाद विलेन को एक मामूली मुक्के में ढेर कर देगा मगर तब तक उसकी गर्जनाओं से सारा शहर इकठ्ठा हो चुका होगा। फाइट के दौरान हीरोइन के चेहरे के एक्सप्रेशन हीरो की विलेन के लिये दरिंदगी और वहशियत दर्शायेंगे। अ..ढिशुम अ..भिशुम्ब..।
हालांकि वह विलेन को पहले भी मार सकता था अगर उसने पिस्तौल फेंक कर विलेन को ललकारा न होता तो। मगर गलती विलेन की है जनाब क्यूंकि उसने ही मौका दिया हीरो को जब गला दबाने की जगह उसने हीरो का परिवार खत्म करते हुए उसे पानी में या जंगल में फिकवा दिया था और उसके बड़े होकर उंगली करने के बावजूद भी गोली मारने की जगह उसे "तड़पा-तड़पा कर मारने के लिये" अपने लप्पूझन्ने जैसे लड़ाके के साथ ऐसे पिंजरे में बंद कर दिया जिसे एक लात में कपिल शर्मा भी तोड़ दे।
मगर हाॅलीवुड में मसला अलग है। हीरो दुनिया बचाने की खातिर सैक्सी और स्लिम हीरोइन से ज़ोरदार सैक्स करके खुद में जुनून पैदा करता है और उसके बाद जब मिशन पर जाता है तो उसे पता होता है कि एक ही मौका मिलेगा विलेन को टपकाने का। तभी तो सैक्स करके निकला है भई कि मर भी गये पैंचो तो गम नहीं। फाइटर प्लेन उड़ाकर, साइटें हैक कर, बाइकें लहराकर, सारे शहर में गदर मचा कर जब वो विलेन को एक बंद कमरे में पकड़ लेता है तो शुरु होता है एक तहज़ीब से भरा ऑन द टेबल बातचीत का एक दौर। विलेन को मौत दिख गई है मगर चेहरे पर शिकन नहीं। हो भी क्यूं पैंचो सारे मज़े वो लूट चुका है जिंदगी के। सिगार का एक अंतिम कश। हीरो उसके सामने ही पिस्टल पर लंबा साइलेंसर लगाता है और टेबल के नीचे से आवाज़ आती है "च्यूं"। विलेन के काले कोट के भीतर "टाइड" से धुली शर्ट से एक लाल लकीर बन रही है। खेल खल्लास। फिर बीच पर एक शानदार काॅटेज पर बिकिनी धारी नई मगर पुरानी वाली से मस्त माल से एक नये सैक्स सेशन की शुरुआत। सीन क्लोज़्ड।
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