मुझमे कितने राज हैं बतलायूँ क्या,
बंद एक मुद्दत से हूँ खुल जाउ क्या...???
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मिन्नत...खुसामाद...इल्तज़ा और मैं क्या-क्या करूं, मर जाउ क्या...???
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एक पत्थर है वो मेरी राह का
गर ना ठुकराउ तो ठोकर खाउ क्या...???
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तेरे ही इश्क़ का परचम लिये लाशों की तरह फिरते थे हम,
तेरे दिये वो सारे दर्द गिनवाउ क्या...???
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फिर जगाया तूने सोये शेर को,
अपना फिर वही लहजा-दराजी दिखाउ क्या...???
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