Tuesday 20 January 2015

बात उन दिनो की है जब मैं हॉस्टेल मे रहता था और वहा एक अनोखी घटना घटित हो रही थी-........रवि सिंह(Radhe)


बात उन दिनो की है जब मैं हॉस्टेल मे रहता था और वहा एक अनोखी घटना घटित हो रही थी-
अब इसे छात्रो का चम्मच प्रेम कहें या कुछ और...बच्चे हवन की वेदी पे हैं, और उनकी जेब से चम्मच बाहर झांक रहे मानो पण्डित जी से कह रहे हो "जी मेरी उपस्थिति भी दर्ज की जाये"
हालांकि दोपहर के भोजन के बाद बाहर धूप सेंकते हुए चम्मच नजर आना तो आम बात है, परंतु बाहर अजय भाई की दूकान पे सामान लेकर पैसे निकालते हुए, पैसे के साथ चम्मच भी निकल आती देखी गयी थी, शाम को बाहर राउंड लगाते बच्चो के हाथ चम्मच दिख ही जाते मानो यहा का पहचान-पत्र यही हो और हमेशा साथ रखना अनिवार्य हो
"अन्नपूर्णा" के अंदर की शाम कुछ यू ही दिखती थी, किसी को चाय मे चीनी मिलानी हो या टीना को गुलाब-जामुन खानी हो। चम्मच तो सबके पास उपलब्ध था ही
अन्नपूर्णा वालो को भी देखकर अच्छा लगता था की बच्चे अपने चम्मच खुद ही लेकर आते हैं
कक्षा मे बच्चो के पास कलम हो ना हो जेब मे चम्मच जरूर दिख जाती थी, खैर कलम तो मेरे पास परीक्षा मे भी नहीं होती थी, दूसरो से ले लेता था क्युकि मेरी कलम तो बस व्यंग के लिये ही खुलती है(परीक्षा की कॉपियाँ इसकी साक्षी है)
योग की कक्षा मे जब ये शीर्षासन या सर्वांगासन लगाते तो इनकी चम्मच बाहर गिर ज़ाती.........यहा तक की जब मैं एक रात फिश-पॉंड के पास बैठा था तो दो मछली आपस मे बाते कर रहे थे शायद वे प्रेमी-युगल थे-
नर कहता है सुन डार्लिंग ये देख आज मैं तेरे लिये क्या लाया हूँ (चम्मच दिखाते हुए), मादा बोली अरे ये कहा से उठा लाये
वो बोला सुन र सनम वो शाम को आते हैं ना कुछ आशिक़ मिजाज लौंडे वो हमे रोटी डालने के बहाने आस-पास की नाजुक कलियों पे दाना डालने मे मसगूल थे और उसके जेब से चम्मच सरकती हुई इधर आ गिरि और इसे उठा कर मैं तेरे लिये ले आया अब अपना भी स्टॅंडर्ड बढ़ जायेगा हम-दोनो अब इसी से ब्रेकफास्ट, लंच, और डिनर किया करेंगे।
आख़िर ये था क्या चम्मच के प्रति इनकी दीवानगी, प्रेम या चम्मच की कोई खास जरूरत
इसका जवाब सुनील भाई की व्यथा मे छुपी, उनके अनुसार पिछले छह माह मे २०० बच्चो के लिये १२०० चम्मच मगवाये गये थे परंतु मेस मे एक भी उपलब्ध नहीं है, इसकी पूर्ति के लिये उन्होने सारे उपाय कर लिये|
इनमे से कुछ चम्मच आस पास की झाड़ियो मे मिले, कभी राह चलते पैरो मे लगते, किसी की बालकनी मे लावारिस सी पड़ी रहती, किसी के कमरे मे जाओ तो २-४ तो यू ही दिख जाती, आलमीरा खोलो कोई सामान निकालने तो पहले चम्मच बाहर निकलती......यहा तक की क्रिकेट की पिच बनाते वक़्त भी चम्मच मिल जाते जमीन से....
अंततः मेस से चम्मच की सुविधा खत्म कर दी गयी, इसके पीछे यह कारण भले ही ये दे दिया गया हो की आयुर्वेद के अनुसार भोजन हाथ से ग्रहण किया जाना चाहिये.......परंतु मेरे हिसाब से कॉलेज-प्रशासन के दिमाग मे ये बात होगी की कही हमारे बच्चे "चम्मच-छाप" ना बनकर रह जाये...........रवि सिंह

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