Friday, 28 August 2015

कलाई पर बंधा प्यार का अनोखा बंधन (जानिये राखी के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को )



By:- Arahan singh dhami 


ये बंधन है भाई - बहन के प्यार का, इसे सिर्फ धागा मत समझ लेना। 
हर बहन है शक्ति का रूप उसे अबला मत समझ लेना। 

भाई रक्षा करेगा सिर्फ इसी वजह से  हमारी बहने अपने भाइयों के कलाइयों पर राखी नही बांधती, बल्कि वो तो खुद इस दिन प्रण करती है की कभी उसका भाई किसी मुसीबत में पड़ जाय तो वह भी उसकी रक्षा करेगी।
क्योंकि हमारी बहने इतनी कमजोर नही की, उसे अपने भाई को इसीलिए राखी बांधनी पड़े के वो उसकी रक्षा करेगा, बल्कि बहने भी इस दिन अपने भाई को हर मुसीबतों से बचाने का संकलप लेती हैं। रक्षाबंधन एक बहुत ही पवित्र बंधन है भाई और बहिन के बीच, जो दोनों को जीवन भर बांधे रहता है। बहन जैसे ही राखी बांधती है भाई मन में प्रण लेता है की " चाहे कोई भी परिस्थिति  क्यों न हो मैं अपनी बहन की रक्षा सदैव करूँगा , चाहे मैं कहीं भी क्यों न हूँ। " साथ ही भाई अपनी बहन की  लम्बी एवं खुशहाल ज़िन्दगी की कामना करता है। और उसे सप्रेम भेंट  (उपहार ) देता है। और भगवान से प्रार्थना करता है की उसकी बहन को हर पल ढेर सारी खुशियां देना।
ये एक अनोखा बंधन है जिसे शब्दों में बयां करना संभव नही। राखी की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है।  आईये इसके पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को जाने।
   
रक्षाबंधन  हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया 

जाने वाला त्योहार है। जो भाई का बहन



के प्रति प्यार का प्रतिक है।  


ऐतिहासिक महत्व :- मेवाड़ की महारानी कर्मावती  ने मुग़ल राजा हुमायूँ  को राखी भेजकर अपनी राज्य में आक्रमण न करने की प्रार्थना की। महारानी कर्मावती विधवा थी , उनकी पति महाराजा राणा सांगा थे। मुस्लिम होते हुए भी हुमायूँ ने राखी की लाज रखी। और राज्य पर आक्रमण नही किया।  उल्टा वे मेवाड़ की और से बहादुरशाह के विरुद्ध लड़े , और मेवाड़ राज्य की रक्षा की।

चंद्रशेखर आजाद का प्रसंग:-

बात तब की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फिरंगी उनके पीछे लगे थे। 
 वे फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतु तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे। जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्टे आजाद को डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने शरण देने से इनकार कर दिया, लेकिन जब चंद्रशेखर आज़ाद  ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आजाद को पता चला कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आजाद ने महिला को कहा, 'मेरे ऊपर पांच हजार रुपए का इनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ़्तारी पर पांच हजार रुपए का इनाम पा सकती हैं।  जिससे आप अपनी बेटी का विवाह आसानी से करवा सकती हैं।

यह सुन विधवा रो पड़ी और उसने कहा - “भैया! तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखकर घूमते हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।” यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बाँध कर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे, अचानक उसने देखा कि तकिये के नीचे 5000 रूपये हैं । उसके साथ एक पर्ची भी थी जिस पर लिखा था- “अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आजाद।”

पुरू का प्रसंग:- सिकंदर जो की कभी पराजित नही हुआ था, वह पुरू के बारे में सुनकर विचलित हो गया। ये बात सिकंदर की पत्नी की पत्नी को ज्ञात हो गयी , पुरू से अपनी पति की रक्षा करने के लिए उसने पुरू को राखी बांधकर भाई बनाया, और युद्ध में सिकंदर को न मारने का वचन लिया। इसी कारण से युद्ध में पुरू ने राखी के वचन को निभाया और सिकंदर को जीवनदान दिया।    


मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी

जब-जब राखी भिजवाई

रक्षा करने दौड़ पड़े वे

राखी-बन्द शत्रु-भाई॥


पौराणिक महत्व:- भगवान श्री कृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध करते समय, कृष्ण जी की तर्जनी ऊँगली में चोट आ गए गई , तो उस समय द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साडी फाड़कर उनकी ऊँगली पर बाँध दी थी। यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को घटी थी।
  द्रौपदी का जब चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने उनकी लाज बचाकर राखी की लाज बचाई।

वामनावतार का प्रसंग:-  रक्षाबंधन का प्रसंग वामनावतार नामक पौराणिक कथा में भी मिलता है। राजा बलि ने यज्ञ सम्पन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, और देवराज इंद्रा ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि दान 

में मांग ली और राजा बलि ने दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती को 

नाप दिया और राजा बलि को रसातल में भेज दिया। राजा बलि ने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से 

हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। इससे लक्ष्मी जी चिंतित हो गई। और नारद जी की सलाह 

पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और उसे रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया, और बदले में विष्णु 

जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। 


और तब से ये श्लोक प्रकाश में आया :- येना बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबलह् !                                                                                             तेन त्वामपि बध्नामि रक्शे मा चल मा चल !

  पंडित रक्षा सूत्र बांधते समय इसी मंत्र का उच्चारण करते हैं। 

राखी सिर्फ भाई - बहन के बीच का कार्यकलाप नही रह गया है। आज राखी देश की रक्षा, पर्यावरण रक्षा, 

हितों की रक्षा आदि के लिए भी बाँधी जानी लगी है। 


उत्तराखंड के पिथौरागढ़ शहर में स्कूल की बालिकाएं स्कूल में लगाये पेड़ो पर धागा बांधते हैं और सालभर 

उनकी देखभाल करती हैं। 



आज कई भाइयों की कलाई पर सिर्फ इसीलिए राखी नही बंध पाती, क्योंकि उनकी बहनो को उनके माँ-बाप 

ने दुनिया में आने ही नही दिया। पुत्र प्राप्ति की लालसा में उनके माँ - बाप उनकी बहनो को कोख़ में ही 

मार देते हैं। यह एक जघन्य अपराध है। 



इस बार राखी में बहने अपने भाइयों से एक वचन ले, उन्हें बोले की जैसे तुम मेरी इज्ज़त और सम्मान करते हो 

वैसे ही दूसरों की बहनो की भी इज्जत और मान सम्मान करे उनके साथ भी अच्छा व्यवहार करे। 
  
हमारा निवेदन है की दूसरों की बहनो से बुरा या गलत व्यवहार करने से पहले ज़रा अपनी बहन के बारे में 

सोच लेना। क्योंकि उसकी साथ भी कोई बुरा बर्ताव कर सकता है , तब आपको कैसा लगेगा। 

                                 क्षाबंधन की ढेर सारी बधाइयाँ  





  
           

No comments:

Post a Comment